महाभारत में रंतिदेव नामक एक राजा का वर्णन मिलता है जो गोमांस परोसने के कारण यशवी बना. महाभारत, वन पर्व (अ. 208 अथवा अ.199) में आता है
राज्ञो महानसे पूर्व रन्तिदेवस्‍य वै द्विज
द्वे सहस्रे तु वध्‍येते पशूनामन्‍वहं तदा
अहन्‍यहनि वध्‍येते द्वे सहस्रे गवां तथा
समांसं ददतो ह्रान्नं रन्तिदेवस्‍य नित्‍यशः
अतुला कीर्तिरभवन्‍नृप्‍स्‍य द्विजसत्तम ---- महाभारत, वनपर्व 208 199/8-10


अर्थात राजा रंतिदेव की रसोई के लिए दो हजार पशु काटे जाते थे. प्रतिदिन दो हजार गौएं काटी जाती थीं
मांस सहित अन्‍न का दान करने के कारण राजा रंतिदेव की अतुलनीय कीर्ति हुई.
इस वर्णन को पढ कर कोई भी व्‍यक्ति समझ सकता है कि गोमांस दान करने से यदि राजा रंतिदेव की कीर्ति फैली तो इस का अर्थ है कि तब गोवध सराहनीय कार्य था, न कि आज की तरह निंदनीय



महाभारत में गौ
गव्‍येन दत्तं श्राद्धे तु संवत्‍सरमिहोच्यते --अनुशासन पर्व, 88/5
अर्थात गौ के मांस से श्राद्ध करने पर पितरों की एक साल के लिए तृप्ति होती है

7 comments:

गीता की बोली said...

ठीक मित्र गाय का दूध गो मूत्र गो की
हर चीज को हिन्दू पवित्र मानते हैं
क्या गो का दूध गो मांस नही हे
जो आज हिन्दू की रसोई में दुर्लभ
होता जारहा है
समझे या नही

Shah Nawaz said...

[b]राज्ञो महानसे पूर्व रन्तिदेवस्‍य वै द्विज
द्वे सहस्रे तु वध्‍येते पशूनामन्‍वहं तदा
अहन्‍यहनि वध्‍येते द्वे सहस्रे गवां तथा
समांसं ददतो ह्रान्नं रन्तिदेवस्‍य नित्‍यशः
अतुला कीर्तिरभवन्‍नृप्‍स्‍य द्विजसत्तम ---- महाभारत, वनपर्व 208 199/8-10[/b]

आपने उपरोक्त श्लोक जो व्याख्या की है, क्या उसके सही होने का कोई सबूत है आपके पास?

क्या आपने उसपर गहन अध्यन किया है? क्योंकि बिना गहन अध्यन के कुछ भी कहना मेरे विचार से सही नहीं है.

Jani Dushman said...

शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति
पुराणों में इसकी उत्पत्ति की कथाएं विभिन्न स्थानों पर विभिन्न रूपों में लिखी हुई मिलती हैं , देखिये हम यहां कुछ उदाहरण उन पुराणों से पेश करते हैं , यथा
1- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।
यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।
उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -
‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘
यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा , तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि - ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘
उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ ।
इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब - ब्रह्मा जी ने कहा - आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले - हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता ।
यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513

2- शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया । - साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15

3- शिवजी एकदम नंग धड़ंग रूप में ही भिक्षा मांगने के लिए ऋषियों के आश्रम में चले गये , वहां उनके इस देवेश्वर रूप को देखकर ऋषि पत्नियां उन पर मोहित हो गईं और उनकी जंघाओं से लिपट गईं ।
यह दृश्य देख ऋषियों ने शिवजी के लिंग पर काष्ठ और पत्थरों से प्रहार किया , लिंग के पतित हो जाने पर शिवजी कैलाश पर्वत पर चले गये ।
- वामनपुराण खण्ड 1 श्लोक 58,68,70,72,पृष्ठ 412 से 413 तक

4- सूत जी ने बताया कि दारू नाम के वन में मुनि लोग तपस्या कर रहे थे , शिवजी नग्न हो वहां पहुंच गये और कामदेव को पैदा करने वाले मुस्कान-गान कर नारियों में कामवासना वृद्धि कर दी ।
यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी भूविलास करने लगीं , अपनी पत्नियों को ऐसा करते देख मुनियों ने शिव को कठोर वचन कहे । - डायमंड प्रेस , लिंग पुराण पृष्ठ 43

शिवजी की उत्पत्ति
1- शिवजी स्वयं उत्पन्न हुए ।
- गीता प्रेस शिवपुराण विन्धयेश्वर संहिता पृष्ठ 57
2- शिवजी , विष्णु जी की नासिका के मध्य से उत्पन्न हुए ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण द्वितीय रूद्र संहिता अध्याय 15 पृष्ठ 126
3- शिव का जन्म विष्णु के शिर से माना जाता है ।
- डायमंड प्रेस ब्रह्म पुराण पृष्ठ 141
4- शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए ।
- डायमंड प्रेस कूर्म पुराण पृष्ठ 26

Jani Dushman said...

औघड़ मत का पूजा विधान
औघड़ मत में भैरवी चक्र नाम का एक पर्व होता है , जिसमें एक पुरूष को नंगा करके उसके लिंग की स्त्रियां पूजा करती हैं और दूसरे स्थान पर एक स्त्री को नंगा खड़ा कर पुरूषों द्वारा उसकी भग अर्थात योनि की पूजा की जाती है ।
- सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11 , पृष्ठ 192 , डिमाई साईज़ @ डायमंड प्रेस , अग्नि पुराण , पृष्ठ 41
शिवजी ओघड़ थे
1- ब्रह्मा जी शिवजी के पास गये और बोले - ‘‘हे ओघड़‘‘ ।
- साधना प्रेस हरिवंश पुराण पृष्ठ 140
2- सूत जी ने कहा - शंकर जी ‘‘ओघड़‘‘ हैं ।
- डायमंड प्रेस ब्रह्माण्ड पुराण पृष्ठ 39@साधना प्रेस स्कन्ध पुराण पृष्ठ 19
शिवजी का भेष
1- मुण्डों की माला धारण करते हैं ।
- पद्म पुराण , खण्ड 1 , श्लोक 179 , पृष्ठ 324
शिवजी का निवास
1- शिवजी श्मशान घाट में रहते हैं ।
- डायमंड प्रेस वाराह पुराण पृष्ठ 160
शिवजी का आहार
1- शिवजी कहते हैं कि - ‘‘मैं हज़ारों घड़े शराब , सैकड़ों प्रकार के मांस से भी - ‘‘लिंग-भगामृत‘‘ के बिना सन्तुष्ट नहीं होता‘‘ । - वेंकेटेश्वर प्रेस कुलार्णव तन्त्र उल्लास पृष्ठ 47
2- शिव जी अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते हैं । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण तृतीय पार्वती खण्ड अध्याय 27 पृष्ठ 235
शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध
1- सभी लोग लिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध करते हैं । -गीता प्रेस ,शिव पुराण , पृष्ठ 69, श्लोक 14
2- शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुएं ग्रहण करना शास्त्र सम्मत नहीं है ।
3- शिव जी को आहुति देने वाले अपवित्र हो जाएंगे । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110

शिवजी के सम्बंध में पुराणों की बातें
1- शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है । -कला प्रेस , सर्व सिद्धान्त संग्रह, पृष्ठ 13
2- जो लोग शिव को संसार की रक्षा करने वाला मानते हैं , वे कुछ भी नहीं जानते हैं । -देवी भागवत पुराण, खण्ड 1, श्लोक 6, पृष्ठ 13
3- जैसे कलि युग का प्रचार होगा वैसे ही शिव मत का प्रचार बढ़ेगा । -सूर्य पुराण, श्लोक 54, पृष्ठ 162

शिवजी सन्ध्या करते थे
सूत जी बोले - शिव जी सन्ध्या करते हैं । -पद्म पुराण खण्ड 1, श्लोक 201, पृष्ठ 328
शिवाजी की पत्नी का नाम ‘पार्वती‘ है । -ठाकुर प्रेस,शिव पुराण , तृतीय पार्वती खण्ड , अध्याय 5 , पृष्ठ 275

पार्वती के अनेक नाम
काली , कालिका , कामाख्या , भद्रकाली , उमा , भगवती , अम्बा , चण्डिका , चामुण्डा , विजया , मुण्डा , जया , जयन्ती , आदि ‘पार्वती‘ के ही नाम हैं । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण, द्वितीय, रूद्र संहिता, पृष्ठ 128
काली की उत्पत्ति
1- रूद्र की जटा से काली उत्पन्न हो गई । -गीता प्रेस,
शिव पुराण,रूद्र संहिता, पृष्ठ 151
2- नारायण की हड्डियों से काली उत्पन्न हो गई । -डायमण्ड प्रेस मार्कण्डेय पुराण पृष्ठ 108
काली का आहार
1- काली सैकडों-लक्ष अर्थात लाखों हाथियों को मुख में रखकर चबाने लगी । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण पंचम युद्ध खण्ड अध्याय 37 पृष्ठ 371
2- अम्बिका मदिरा अर्थात ‘ाराब पीती थी । -संस्कृति संस्थान , वामन पुराण , खण्ड 12 , ‘लोक 37 , पृष्ठ 250
3- काली की जीभ से कन्या पैदा हो गई । -देवी भागवत , खण्ड 2, ‘लोक 36, पृष्ठ 248
‘शिवलिंग और पार्वतीभगपूजा ?‘ का एक अंश
लेखक : सत्यान्वेषी नारायण मुनि , स्थान व पोस्ट - सिकटा जिला - पश्चिमी चम्पारण , बिहार
प्रकाशक : अमर स्वामी प्रकाशन विभाग , 1058 विवेकानन्द नगर , गाजियाबाद - 201001
मूल्य : 5 रूपये मात्र

satya gautam said...

वास्‍तुशास्‍त्र जातिवाद की दलदल

घर बनाना शुरू करने से पहले वास्‍तुशास्त्र के अनुसार नियमों का पालन करना चाहिए, 'समरांगण सूत्रधार वास्‍तुशास्‍त्र' में महाराजा भोजदेव ने लिखा है कि शुद्रों के लिए 3 तल वाला भ्‍ावन कल्‍याणकारी होता है, इस से बढ कर यदि शुद्र का भवन होगा तो उस के कुल का नाश हो जाएगा
'सार्ध त्रिभूमिशूद्राणां
वेश्‍म कुर्याद् विभूतये,
अतोधिकतरं यत् स्‍यात्
तत्‍करोति कुलक्षयम'
('समरांगण सूत्र 35/ 21)

वह भूमि ब्रह्मण के लिए शुभ शुभ है जिस के उत्तर में ढलान हो, जो मधुर हो, जिस से घी की महक आए, जिस पर कुशा नामक घास उगी हो तथा जिस का रंग सफेद हो,
वह भूमि क्षत्रिय के लिए शुभ है, जिस के पूर्व में ढलान हो, जिस का स्‍वाद कसैला हो, जिस से खून की बू आए, जिस पर शरपत (सरकंडा) उगा हो तथा जिस का रंग लाल हो,
वह भूमि वैश्‍य के लिए शुभ है, जिस के दक्षिण में ढलान हो, जिस का स्‍वाद तीखा (खट्टा) हो, जिस से अन्‍न की महक आती हो, जिस पर दूब उगी हो तथा जिस का रंग पीला हो,
वह भूमि शुद्र के लिए शुभ है, जिस के पश्चिम में ढलान हो, स्‍वाद कटु (कडवा) हो, जिस से मद्य (शराब) की गंध आती हो, जिस पर काश नामक घास उगी हो तथा जिस का रंग काला हो,

और
शिल्‍प शास्‍त्र में कहा गया है'
क्षारगंधा भवेत् वैश्‍या,
शुद्रा च पुरीषगंधजा (शिल्‍पशास्‍त्रम, 1/6)
अर्थात क्षार (खटटे पदार्थ) की गंध वाली भूमि वैश्‍य के लिए शुभ होती है और पुरीष (टट्टी, मल) की गंध वाली भूमि शद्र के लिए शुभ होती है


घर की लंबाई, चौडाई जाति अनुसार होनी चाहिए, ब्रह्मणों के घरों की लंबाई, चौडाई से 10 अंश अधिक हो, क्षत्रिय के घर की लंबाई चौडाई से 8 अंश अधिक, वैश्‍य की 6 अंश और शुद्र की 4 अंश अधिक होः
'दशांशयुक्‍तो विस्‍तारा-
दायामो विप्रवेश्‍मनाम्,
अष्‍टषट्चतुरंशाढय
क्षत्रादित्रयवेश्‍मनाम्'

Bharat Bhushan said...

आपके ब्लॉग पर शांति बनी रहे इसके लिए शुभकामनाएँ.

irshad ahmad said...

satya gautam ji kitna bhana aur kitna kahaniya bnaiye ga aap logo ke kisi bhi bato ka koi thos pramad nahi milta hai aap kah rahe hai ki siv ji aughad the mgr aao ko yad diladu aughad logo ko din aur duniya se koi matalab nahi hota hai wo bina pariwar ke hote hai aur aisa abhitak koi pramad nahi mila hai ki siv ji aughad the abhi aap aughd kah rahe hai koi aur se puchne par kuch aur uttar milega q ki koi ,unlogo ka koi thos prmad nahi mila hai aur nahi milega q ki aap ki sare kitabo me ferbal ki ja chuki hai