Tuesday, February 9, 2010

महाभारत की सेना

कुरूक्षेत्र का युद्ध क्या ऐतिहासिक घटना है और इस मैं कितनी सेनाओं ने भाग लिया? कहीं यह कपोलकल्पना तो नहीं!
यह युद्ध एक प्रकार से विश्वयुद्ध था, महाभारत में प्रयुक्त वरूणास्त्र, आगनेयास्त्र आदि प्राचीनकाल के विज्ञान की देन मान संतोष किया जा सकता है पर इस में भाग लने वाली सेनाओं की संख्या पर विश्वास नहीं होता. पहले भारत और फिर महाभारत के नाम से प्रसिद्ध युद्ध की विचारणीय बातें
महाभरत में कौरव और पांडव पक्षों से अठारह अक्षौहिणी सेना ने भाग लिया था.
अक्षौहिणी का अर्थ
सुत पुत्र वैशंपायन बोले ‘‘एक रथ, एक हाथी, पांच पैदल मनुष्य और तीन रथों को ‘पत्ति‘ कहा जाता हे, विद्वान तीन पत्तियों का एक सेनामुख और तीन सेनामुखों का एक गुल्म कहते हैं. तन गुल्मों का एक गण, ती गणों की एक वाहिनी और तीन वाहिनियों की एक पृतना होती है. तीन पृतनाओं की एक चमू और तीन चमू की एक अनीकिनी होती है. अनीकिनी के दस गुना को ही विद्वानों ने अक्षौहिणी बताया है ( वही 2,19-22)
एक अक्षौहिणी में रथ, हाथी, घोडे और पैदल की संख्या वैशंपायनजी ने बताई, गणित के जानकारों ने बताये रथों की संख्या 21,870 बताई है, हाथियों की संख्या भी इतनी ही, अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या 1,09,350 है, घोडों की संख्या 65,610 बताई गई हैं, कौरवों और पांडवों की सेना में इसी गणना के अनुसार 18 अक्षोहिणी सेना एकत्र हुई थी आदि पर्व,
(2,23-28) दोनों पक्षों की कुल मिला कर
हाथी 21,870 गुणा 18 = 3,93,660
रथ 21, 870 गुणा 18 = 3,93,660
पैदल 1,09,350 गुणा 18 = 19,68,300
घोडे 65,610 गुणा 18 = 11,80,980
एक घोडे पर एक सवार बैठा होगा, हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक पीलवान और दूसरा लडने वाला योद्धा, इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और चार घोडे रहे होंगें, इस प्रकार महाभारत की सेना के मनुष्यों की संख्या कम से कम 46,81,920 और घोडों की संख्या, रथ में जुते हुओं को लगा कर 27,15,620 हुई इस संख्या में दोनों ओर के मुख्य योद्धा कुरूक्षेत्र के मैदान में एकत्र ही नहीं हुई वहीं मारी भी गई,
उपर गिनाई गई सेनाओं को यदि बोरों की तरह एकदूसरे से सटाकर बराबर बराबर भी खडा किया जाए तो कुरूक्षेत्र का मैदान ही नहीं, उस जैसे कमसे कम दस जिलों की भूमि की आवश्यकता पडेगी,
युद्ध 18 दिन चला था
प्रतिदि मृतकों को जला दिया जाता होगा, प्रति दिन 1,96,830 मृतकों को जलाने के लिए कितनी लकडी चाहिए, कितनी भूमि चाहिए, एक अक्षौहिणी में कमसे कम दो लाख मनुष्य तो रहे ही होंगे, इतने मुरदे जलाने के लिए प्रतिदिन लकडी ढोने वाले कितने मजदूर लगाए गय और कितनी दूर तक जंगल साफ हो गए होंगे, ऐसे बहुत से प्रश्‍नों का उत्तर नहीं मिलता, जानवरों और इतनी संख्‍या के सैनिकों का खाने का क्‍या पबन्‍ध था, हाथी घोडों के लिये इतनी बडी मात्रा में चारा सब कल्‍पना से बाहर की बातें

पहले इस गंथ का नाम ‘जय इतिहास‘ था इसकी श्लोक संख्या 6,000 थी बाद में यही ग्रंथ 24000 श्लोंको वाला ‘भारत‘ कहलाया, आजकल इस का नाम महाभारत है तथा इस की श्लोक संख्या बढते बढते लगभग एक लाख हो गई है,

इस लेख को विस्‍तार से पढने के लिये लायें
पुस्तकः कितने अप्रासंगिक हैं धर्म ग्रंथ
लेखकः स. राकेशनाथ, पृष्ठ 298 से 300 तक
336 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य 70 रूपये
मिलने का पता
दिल्ली बुक क.
एम 12, कनाट सरकस, नई दिल्ली . 110001

5 comments:

KULU said...

TUM KYA KHANA CHA RAHAI HO KI MAHABHART KA UATH NAHI HUHA HAI. कुरूक्षेत्र का मैदान HI PROOF HAI KI WAR HUA HAI

rahul said...

KULU bhaie qasbe DEOBAND ka naam suna he..agar nagron ke naam saboot hen to deoband men saare deo band hen.

lovely kankarwal said...

राहुल जी सबसे पहले तो आप बधाई के पात्र्र है,क्योकि आपकी जानकारी बहुत ही अच्छी है,,और अपने इतिहास की जानकारी हर एक होनी ही चाहिए,तो राहुल जी आपके प्रशन भी काफी हद तक ठीक है..और आपके प्रशनो के उत्तर भी आपके प्रशन ही है.युद्द 18 दिन तक चला तो आप एक बात बताइए क्या इतनी सेना हर रोज़ इकठी लडती थी ,नहीं रोज़ 4 से 5 योद्दा ही लड़ते थे और कई योद्दा तो लड़ते-2 युद सीमा से बहार भी निकल जाया करते थे ,कुरूक्षेत्र की लाल मिटी आज भी पुकार के कह रही है की उसका रंग लाल नहीं है वो उन शूरवीरो के खून से लाल हुई है जिनके खून की यहाँ कभी नदिया बही थी,बाक्की का बाद मैं अभी थोडा जल्दी मैं हु ..रामकुमार बसोलां वाले ,,,,,

देवसूफी राम कु० बंसल said...

युद्ध स्थल : प्रचारित मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ जो मुझे सही प्रतीत नहीं हुआ. इस बारे में मैंने कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के इतिहास और इंडोलोजी विभाग के विद्वानों के मत जानने चाहे जिनके अनुसार कुरुक्षेत्र में की गयी अनेक खुदाइयों पर भी उस क्षेत्र में युद्ध के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. मेरे द्वारा सरस्वती नदी के मार्ग और अवशेषों के अन्वेषण हेतु की गयी पदयात्राओं के दौरान मुझे अजमेर रेलवे स्टेशन के लगभग २ किलोमीटर उत्तर में उपस्थित जलधारा के दूसरे किनारे पर एक विशाल मैदान दिखाई दिया. वस्तुतः यह जलधारा ही सरस्वती नदी का एक अवशेष है. इस मैदान में महाबारत युद्ध क्षेत्र के अनेक लक्षण उपलब्ध हैं, विशेषकर युद्ध का अवलोकन करने का स्थान जो एक समीपस्थ पर्वत शिखर पर बना है. इस बारे में अभी अनुसंधान चल रहा है, विशेषकर महाभारत ग्रन्थ में इस स्थान के सन्दर्भ के बारे में.

http://bhaarat-tab-se-ab-tak.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html

PARV MALIK said...

shrimaan rahul,aap ne senao ke ekatra hone par jo prashna uthaae hain jaise itni sena kurukshetra mein nahi sama sakti to aapki jaankari ke liye main bata doon ki aap mahabharatkaleen kurukshetra ki vartmaan kurukshetra se tulna nhi kar sakte kyunki bhoogol samay aur kaalkhand ke saath badalta hai.jahaan kuchh sthaan samay ke saath vistrat hote hain wahin anya sikudte jaate hain. tatkaleen kurukshetra poore punjab ,haryana,uttar pradesh,m.p. aur rajasthan ko samete hue tha.iss tarah itne vistrat sthaan me 18 akshouhini senaao ka samahit hona aur ladna koi anokhee baat nahi hai aur poori tarah tarkik hai.